शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

सच और झूट

कुछ लोग लगे है सिर्फ
अपनी ही बात को सच करने में
कुछ बैठे है सच हो कर भी
हार को अपनाने में

हर आदमी की
हर बात भी सच नही होती
ईर्ष्या द्वेष घृणा
गलत फहमी स्वार्थ
ये भी लगे रहते है
झूट को
सच साबित करने में
इसलिये
अत्यधिक आत्मविश्वास
डुबो देता है नैय्या
बड़े बड़े सुरमाओकी
फिर हमारी औकात ही क्या है
झूट को सच साबित करने की

गरीब कहा जाए

सच का झूट
और झूट का सच
साबित होता होगा
शायद अदालतों में
वहाँ तो पैसे के लिये
कुछ भी होता है
झूट जीत जाता है
सच खून के आंसू रोता है
यही हाल है राजनीति का
यहां तो जीतनेवाला झुटा
और हारने वाला भी
यहाँ असल में
हारती है जनता
जीतनेवाला सुनता नही
हारने वाला मानता नही
45 साल में न गरीबी हटी
न 15 लाख अकाउंट में आये
अब ये सोचो
गरीब जाए तो कहा जाए