मंगलवार, 14 सितंबर 2021

गुरुत्वाकर्षण

विषय :- गुरुत्वाकर्षण
कहते हैं न्यूटन ने 'सेब' को गिरते देखा और गुरुत्वाकर्षण का पता लगाया। एक सेब को गिरते देख लिया और पृथ्वी के अंदर गुरुत्वाकर्षण खोज लिया। कितनी चीजें ऊपर को उठ रही थीं.. भाप बनकर जल ऊपर उठता है, पौधे बनकर बीज ऊपर उठते हैं,अग्नि को कहीं भी जलाओ ऊपर की तरफ उठती है; फिर ये नियम क्यों नहीं खोजा कि ये ऊपर किस कारण उठते हैं?ऋषि कणाद ने हजारों वर्ष पहले वैशेषिक-दर्शन में गुरुत्वाकर्षण का कारण बताया।

*1.- संयोगाभावे गुरुत्वातपतनम:-५-१-७(5-1-7)*
(संयोग=जोड़)
*2.- संस्काराभावे गुरुत्वातपतनम:-५-१-१८(5-1-18)*
(संस्काराभावे=अव्यवस्थित, संस्कार =व्यवस्थित)
आगे बढ़ते हुए ऋषि कणाद कहते हैं कि अगर किसी वस्तु में संस्कार है, तब पृथ्वी उसे अपनी तरफ नहीं खींच सकती। संस्कार का अभाव होने पर ही वस्तु गुरुत्व के कारण पृथ्वी पर गिरेगी।
संस्कार ऋषि ने तीन प्रकार के बताए:- 

*1.-वेग, 2.- भावना,3.-स्थितिस्थापक*

तो इन तीन में से वेग संस्कार जिस वस्तु में है; जैसे तीर में हम धनुष से वेग उत्त्पन्न करते हैं तो वह गति करता है जैसे ही वेग संस्कार समाप्त होगा, उतनी दूर जाकर वह अपने गुरुत्व के कारण भूमि पर गिर जाएगा।
पूरी पृथ्वी पर हमारे वैदिक ऋषियों के सिद्धांत हैं, लेकिन फिर भी हम उन्हें दूसरों के नाम से पढ़ने पर विवश हैं।
अर्थात कोई भी वस्तु, जब तक कहीं-न-कहीं उसका जुड़ाव है, वो नीचे नहीं गिरेगी;जैसे:- आम या सेब का टहनी से संयोग जब तक संयोग है तब तक पृथ्वी में कितना भी आकर्षण हो वो वस्तु को अपनी तरफ खींच नहीं सकती जैसे ही संयोग का अभाव हुआ गुरुत्वाकर्षण के कारण वस्तु स्वयं पृथ्वी पर गिर जाएगी
वेदों की ओर लौटो ,कुछ नहीं है अंधी पश्चिमी दौड़ में।

*🚩सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय🚩*

रविवार, 12 सितंबर 2021

वैष्णवता 2

*वैष्णवता 2*

*कोई हमसे पूछ सकता है की, किसी का बाह्य स्वरूप इतना आवश्यक क्यों है? शास्त्रों में दिए गए बाह्य स्वरुप के बिना ही मैं श्रीवैष्णव क्यों नहीं बन सकता?” यह एक उच्च कोटि के श्री वैष्णव के लिये सम्भव हो सकता है, लेकिन साधारण मनुष्यों के लिये नहीं। हमारे लिये शास्त्र ने कुछ नियम बनाये हैं और हमें उनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है| एक लौकिक उदाहरण है– जब एक सिपाही अपने कर्तव्य में अच्छी तरह वरदी पहनता है, तो उस देश का कानून उसे कुछ ताकत देता है।*

*परन्तु वह यह नहीं कह सकता कि मैं सिपाही हूँ मुझे अपने कर्तव्य के दौरान वर्दी की क्या जरुरत है? मेरे दिल मे है देश प्रेम, मुझे वर्दी की क्या जरूरत? ऐसा कोई सेना का जवान कह सकता है क्या? कुछ विशेष लोगो के लिये यह अपवाद हो सकता परंतु अगर वो यह वरदी नहीं पहनता तो उसे वह मान–सम्मान नहीं मिल सकेगा। न उसमे वो गुण, अपने कार्य के प्रति वो सकारात्मकता निर्माण होगी। और चिंता की बात तो यह है कि काम–काज़ के लिए वर्दी पहनने में किसी को कोई संकोच नहीं होता है मगर शास्त्रों में दिए गए आज्ञाओं के पालन करने में ही संकोच होता है| यही दुःख की बात है|*

*वैष्णव एक अनंत तत्त्व ज्ञान है और इसमे श्रीमननारायण इन तथ्यो का केंद्र बनकर स्थापित हैं। वे पूरे मंगल गुण से भरपूर हैं। वे इस नित्य विभूती और लीला विभूती के मालिक हैं। तत्त्वत्रय ज्ञान के अनुसार ये तीन संस्थाएं मुख्य माना जाता है – ईश्वर, चित और अचित। ईश्वर दोनो चित और अचित के मालिक हैं। इन दोनो नित्य विभूति और लीला विभूति में अनगिनत जीव हैं। यह तत्त्व ज्ञान और सिद्धांत सब शास्त्र (वेद, उपनिषद, इतिहास, पुराण, पञ्चतंत्र आचार्यों की श्रीसूक्ति  आदि) पर आधारित हैं। यह शास्त्र विशेषकर चित के लिये ही हैं और यह शास्त्र इस चित को इस लीला विभूति (इसे श्रीभगवद गीता में अशाश्वत और दु:खकालयम बताया गया है) से श्रीवैकुण्ठ (वह जगह जहाँ कोई दु:ख नहीं है केवल सुख ही सुख है) जाने के लिये मदद करता है। यह प्रक्रिया जिससे इस चितयात्रा का प्रारम्भ होता है ( लीला विभूति से नित्य विभूति को ), उसे पञ्च संस्कार कहते हैं।*

*एक श्रीवैष्णव कैसे बनना चाहिए?*

*हमारे पूर्वाचार्यों के अनुसार एक व्यवस्थित संस्कार (प्रक्रिया) जहाँ एक कोई भी श्रीवैष्णव बनता है, उस विधि को “पञ्च संस्कार” कहते हैं।*

*संस्कार एक शुद्ध या निर्मल करने की विधी है। यह एक विधि है जहाँ किसी का रुप परिवर्तन एक अशिक्षित दशा / अवस्था से शिक्षित दशा में होती है। यही वह विधि है जहाँ कोई पहले श्रीवैष्णव बनता है। जैसे कोइ अगर ब्राह्मण परिवार में जन्म लेता है तो उसे ब्रम्ह विधि से गुजर कर ब्राम्हण बनना आसान हो जाता है। उसी तरह एक श्रीवैष्णव परिवार में जन्म लेकर उसे पञ्च संस्कार कि विधि से श्रीवैष्णव बनना आसान हो जाता है।  वैष्णव आत्मा से जुडा है और ब्राम्हण किसी के शरीर से जुडा है। और एक बहुत जरूरी बात वैष्णवों के लिये यह है कि वह पूरी तरह अपने आप को देवतान्तरों से (देवता याने ब्रम्हा, शिवजी, दुर्गा, सुब्रमन्य, इन्द्र, वरुण आदि जो कि पूरी तरह भगवान श्रीमन्नारायण के नियंत्रण में हैं) और जो देवतान्तरों से संबंधित कार्य है उससे दूर रहे।*

*पञ्च संस्कार*

*पञ्च संस्कार/ समाश्रय, इसे शास्त्र बताता है कि यह एक विधि है जहाँ एक व्यक्ति को श्रीवैष्णव बनाया जाता है।*

*पँचसंस्कार का महत्व कल के लेख में*

योग

साधारणत: हम एक मिनट में कोई सोलह से लेकर बीस श्वास लेते हैं। धीरे— धीरे— धीरे— धीरे  ...! नाथ सम्प्रदाय का योगी अपनी श्वास को शांत करता जाता है। श्वास इतनी शांत और धीमी हो जाती है कि एक मिनट में पांच.. .चार—पांच श्वास लेता। बस, उसी जगह ध्यान शुरू हो जाता।

तुम अगर ध्यान सीधा न कर सको तो इतना ही अगर तुम करो तो तुम चकित हो जाओगे। श्वास ही अगर एक मिनट में चार—पांच चलने लगे, बिलकुल धीमी हो जाए तो यहां श्वास धीमी हुई, वहां विचार धीमे हो जाते हैं। वे एक साथ जुड़े हैं। इसलिए तो जब तुम्हारे भीतर विचारों का बहुत आंदोलन चलता है तो श्वास ऊबड़— खाबड़ हो जाती है। जब तुम पागल होने लगते हो तो श्वास भी पागल होने लगती है। जब तुम वासना से भरते हो तो श्वास भी आंदोलित हो जाती है। जब तुम क्रोध से भरते हो तो श्वास भी उद्विग्न हो जाती है, उच्छृंखल हो जाती है। उसका सुर टूट जाता है।, संगीत छिन्न—भिन्न हो जाता है, छंद नष्ट हो जाता है। उसकी लय खो जाती है।

नाथ सम्प्रदाय के योगी  श्वास पर बड़ा ध्यान देते हैं। 

एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग कर रहा था, यह एक नाथ योगी के मस्तिष्क में यंत्र लगा कर जांच कर रहा था कि कब ध्यान ही अवस्था आती है। कब अल्फा तरंगें उठती हैं। बीच में अचानक अल्फा तरंगें अनियंत्रित हो  अदृश्य हो गईं एक सेकेंड को। और उसने गौर से देखा तो योगी की श्वास गड़बड़ा गई थी। फिर योगी सम्हल कर बैठ गया, फिर उसने श्वास व्यवस्थित कर ली। फिर तरंगें ठीक हो गईं। फिर अल्फा तरंगें आनी शुरू हो गईं।

नाथ योगी कहते हैं, श्वास इतनी धीमी होनी चाहिए कि अगर तुम अपनी नाक के पास किसी पक्षी का पंख रखो तो वह कंपे नहीं। इतनी शांत होनी चाहिए श्वास कि सामने दर्पण रखो तो छाप न पड़े। ऐसी घड़ी आती ध्यान में, जब श्वास बिलकुल रुक गई जैसी हो जाती है। कभी—कभी साधक घबड़ा जाता है कि कहीं मर तो न जाऊंगा! यह हो क्या रहा है?

घबड़ाना मत, कभी ऐसी घड़ी आए— आएगी ही—जो भी ध्यान के मार्ग पर चल रहे हैं, जब श्वास, ऐसा लगेगा चल ही नहीं रही। जब श्वास नहीं चलती तभी।।न भी नहीं चलता। वे दोनों साथ—साथ जुड़े हैं।

ऐसा ही पूरा शरीर जुड़ा है। जब तुम शांत होते हो तो तुम्हारा शरीर भी एक अपूर्व शांति में डूबा होता है। तुम्हारे रोएं—रोएं में शांति की झलक होती है। तुम्हारे चलने में भी तुम्हारा ध्यान प्रकट होता है। तुम्हारे बैठने में भी तुम्हारा ध्यान प्रकट होता है। तुम्हारे बोलने में, तुम्हारे सुनने में।

ध्यान कोई ऐसी बात थोड़े ही है कि एक घड़ी बैठ गए और कर लिया। ध्यान तो कुछ ऐसी बात है कि जो तुम्हारे चौबीस घंटे के जीवन पर फैल जाता है। जीवन तो एक अखंड धारा है। घड़ी भर ध्यान और तेईस घड़ी ध्यान नहीं, तो ध्यान होगा ही नहीं। ध्‍यान जब फैल जाएगा तुम्हारे चौबीस घंटे की जीवन धारा पर…। ध्यानी को तुम सोते भी देखोगे तो फर्क पाओगे। उसकी निद्रा में भी एक परम शांति होगी......
जय गुरु गोरखनाथ आदेश आदेश 🙏🙏

संकलन-वैष्णव महाराज

वैष्णव सम्प्रदाय


*वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है. वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है.इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्‍हें, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज- इन 6: गुणों से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' धर्म कहा गया है*

*स्वयम को सेक्युलर समझनेवाले, सब का खून लाल होता है, जाती पाती मनुष्य निर्मित है, सब एक है, ऐसे मत रखनेवाले दोगले इस विषय से दूर ही रहे। न तो ऐसे लोगो को कोई जवाब दिया जायेगा न तर्क कुतर्क*

*वैष्णवता -१*

*अपने पूर्वाचार्यों के बहुत से ग्रन्थो में बहुत सी जगह श्री वैष्णवों के लक्षणो के बारे में उल्लेख किया है। इसी संदर्भ में हमें अपने पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों में बहुत से उदाहरण मिलेंगे।*

*पद्म पुराण में एक मौलिक प्रमाण दिया गया है जिसे हमारे पूर्वाचार्यों ने अपने ग्रंथों में उपयोग किया है –*

*ये कण्ठ लग्न तुलसी नलिनाक्ष माला ये बाहुमूल परिच्रिन्हत शंख चक्रा |*
*ये वा ललाट पटले लसदुर्ध्वपुण्ड्रा ते वैष्णवा भुवनमाशु पवित्र यन्ति ॥*

*यह पूरा श्लोक हमें स्पष्टता से बताता है कि एक श्रीवैष्णव का पूर्ण बाह्य स्वरूप किस तरह होता है और कैसे वह उस जगह को और वहाँ रहनेवाले मनुष्य दोनों को शुद्ध करता है।*

*जिसके गले में तुलसी और कमलाक्ष की माला, (भगवान, पूर्वाचार्य, आचार्य इनके द्वारा धारण किये गये पवित्र माला) जिनके कंधों में भगवान श्रीमन नारायण के चिन्ह शंख–चक्र अंकित है (पञ्च–संस्कार की एक विधि) और ललाट पर सच्छिद्र ऊर्ध्वपुण्ड्र विराजमान है (मतसम्प्रदाय के गुरू का दिया हुआ चिन्ह गौरव सहित धारण करना चाहिए। श्री वैष्णवों को (मृतिका) पासा का सुन्दर सच्छिद्र अपने ललाट पर ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण करके उसको अलंकृत करने के लिये (बीच में) हरिद्रा का श्री धारण करना चाहिए। ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक में ये खडी दोनो रेखाऐ शरणागती का प्रतीक हैं। ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक भगवान के श्रीचरण कमल हैं और बीच में स्थित लक्ष्मीजी का स्थान है। हमारे पूर्वाचार्य तो हमेशा द्वादश तिलक धारण करते थे और करते आये हैं । ऎसे श्री वैष्णव, वातावरण को और वहाँ रहनेवाले मनुष्य दोनों को शुध्द करता है।*
*(अब आज 12 जगह पर तिलक लगाना भले अप्रासंगिक लग रहा हो, पर कम से कम मस्तिष्क पर तो तिलक लगाया जा सकता है न?)*

*हमारे पूर्वाचार्यों ने सदैव अपने बाह्य स्वरूप को मुख्य स्थान दिया है और सदैव यह खयाल रखा है कि किसी भी परिस्थिती में अपने स्वरूपानरूप बाह्य स्वरूप का पूरा ध्यान रखें। बाह्य स्वरूप ही श्रीवैष्णवों की मुख्य पहचान है। अब लोग कहते है कि बाह्य लक्षण पाखंड है। वैष्णवता तो अंदर से होती है लेकिन सिर्फ एक परम श्रीवैष्णव ही दूसरे वैष्णवों को बिना बाह्य स्वरूप के आंतरिक स्वरूप से पहचान सकता है (परम् वैष्णव उसको कहते है जिसको गुरु कृपा से दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई हो। जो परम भागवतो में होती है, सामान्य जन में नहीं!) देखते ही अपनी पहचान हो ऐसा वैष्णवता का लक्षण हमारा तिलक ही हो सकता है।*

*हमारे बाह्य लक्षण कम कम करते करते आज हम शून्य पर आ गये है। आज हमारे पास एक भी लक्षण नही बचा।*

*शेष भाग कल*

*संकलन-राजेन्द्र वैष्णव, औरंगाबाद महाराष्ट्र*
*8055555051*

सोमवार, 6 सितंबर 2021

सनातन धर्म

ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके आपका आभार धन्यवाद होगा

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी
2-रामायण                    वाल्मीकि
3-महाभारत                  वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य
5-महाभाष्य                  पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन
7-बुद्धचरित                  अश्वघोष
8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता        भास
11-कामसूत्र                  वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम्           कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  
14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास
15-मेघदूत                    कालिदास
16-रघुवंशम्                  कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास
18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता               बरामिहिर
23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर        सोमदेव
25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त
27-रावणवध।              भटिट
28-किरातार्जुनीयम्       भारवि
29-दशकुमारचरितम्     दंडी
30-हर्षचरित                वाणभट्ट
31-कादंबरी                वाणभट्ट
32-वासवदत्ता             सुबंधु
33-नागानंद                हर्षवधन
34-रत्नावली               हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव         भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय     जयानक
38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर
39-काव्यमीमांसा         राजशेखर
40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन         राजभोज
42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण
45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द            जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी           कल्हण
49-रासमाला               सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध          माघ
51-गौडवाहो                वाकपति
52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-

प्र.1-  वेद किसे कहते है ?
उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।                                                  
1-ऋग्वेद 
2-यजुर्वेद  
3-सामवेद
4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।
        वेद              ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय
2 - यजुर्वेद      -     शतपथ
3 - सामवेद     -    तांड्य
4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर -  चार।
      वेद                     उपवेद
    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद
    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद
    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद
    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।
उत्तर -  छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
         वेद                ऋषि
1- ऋग्वेद         -      अग्नि
2 - यजुर्वेद       -       वायु
3 - सामवेद      -      आदित्य
4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-   चार ।
        ऋषि        विषय
1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान
2-  यजुर्वेद    -    कर्म
3-  सामवे     -    उपासना
4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।
1-  मंडल      -  10
2 - अष्टक     -   08
3 - सूक्त        -  1028
4 - अनुवाक  -   85 
5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।
1- अध्याय    -  40
2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।
1-  आरचिक   -  06
2 - अध्याय     -   06
3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।
1- कांड      -    20
2- सूक्त      -   731
3 - मंत्र       -   5977
          
प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर- 
1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-  
01-ईश ( ईशावास्य )  
02-केन  
03-कठ  
04-प्रश्न  
05-मुंडक  
06-मांडू  
07-ऐतरेय  
08-तैत्तिरीय 
09-छांदोग्य 
10-वृहदारण्यक 
11-श्वेताश्वतर ।

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर- 
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र

प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

पंच महायज्ञ
       1- ब्रह्मयज्ञ   
       2- देवयज्ञ
       3- पितृयज्ञ
       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
       5- अतिथियज्ञ
   
स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।
नरक  -  जहाँ दुःख है।.

*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,

जय जय श्री राम🙏🙏🙏