रविवार, 29 मार्च 2020

पांडवों की वंशावली

पांडवों की वंशावली



बड़ी ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी प्राप्त हुई .. चूँकि में अभी तक इस संधर्व में अनजान था और इतिहास की वो पुस्तके जो हमने अपने विद्यालयों में पढ़ी है उन पुस्तको में इन जानकारियों का अभाव था ...!! 

महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा हैः

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir) 36 8 25

2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit) 60 0 0

3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay) 84 7 23

4 अश्वमेध (Ashwamedh ) 82 8 22

5 द्वैतीयरम (Dwateeyram ) 88 2 8

6 क्षत्रमाल (Kshatramal) 81 11 27

7 चित्ररथ (Chitrarath) 75 3 18

8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya) 75 10 24

9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain) 78 7 21

10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain) 78 7 21

11 भुवनपति (Bhuwanpati) 69 5 5

12 रणजीत (Ranjeet) 65 10 4

13 श्रक्षक (Shrakshak) 64 7 4

14 सुखदेव (Sukhdev) 62 0 24

15 नरहरिदेव (Narharidev) 51 10 2

16 शुचिरथ (Suchirath) 42 11 2

17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II) 58 10 8

18 पर्वतसेन (Parvatsain ) 55 8 10

19 मेधावी (Medhawi) 52 10 10

20 सोनचीर (Soncheer) 50 8 21

21 भीमदेव (Bheemdev) 47 9 20

22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II) 45 11 23

23 पूरनमाल (Pooranmal) 44 8 7

24 कर्दवी (Kardavi) 44 10 8

25 अलामामिक (Alamamik) 50 11 8

26 उदयपाल (Udaipal) 38 9 0

27 दुवानमल (Duwanmal) 40 10 26

28 दामात (Damaat) 32 0 0

29 भीमपाल (Bheempal) 58 5 8

30 क्षेमक (Kshemak) 48 11 21

क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 विश्व (Vishwa) 17 3 29

2 पुरसेनी (Purseni) 42 8 21

3 वीरसेनी (Veerseni) 52 10 7

4 अंगशायी (Anangshayi) 47 8 23

5 हरिजित (Harijit) 35 9 17

6 परमसेनी (Paramseni) 44 2 23

7 सुखपाताल (Sukhpatal) 30 2 21

8 काद्रुत (Kadrut) 42 9 24

9 सज्ज (Sajj) 32 2 14

10 आम्रचूड़ (Amarchud) 27 3 16

11 अमिपाल (Amipal) 22 11 25

12 दशरथ (Dashrath) 25 4 12

13 वीरसाल (Veersaal) 31 8 11

14 वीरसालसेन (Veersaalsen) 47 0 14

वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा वीरमाह (Raja Veermaha) 35 10 8

2 अजितसिंह (Ajitsingh) 27 7 19

3 सर्वदत्त (Sarvadatta) 28 3 10

4 भुवनपति (Bhuwanpati) 15 4 10

5 वीरसेन (Veersen) 21 2 13

6 महिपाल (Mahipal) 40 8 7

7 शत्रुशाल (Shatrushaal) 26 4 3

8 संघराज (Sanghraj) 17 2 10

9 तेजपाल (Tejpal) 28 11 10

10 मानिकचंद (Manikchand) 37 7 21

11 कामसेनी (Kamseni) 42 5 10

12 शत्रुमर्दन (Shatrumardan) 8 11 13

13 जीवनलोक (Jeevanlok) 28 9 17

14 हरिराव (Harirao) 26 10 29

15 वीरसेन द्वितीय (Veersen II) 35 2 20

16 आदित्यकेतु (Adityaketu) 23 11 13

प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा धनधर (Raja Dhandhar) 23 11 13

2 महर्षि (Maharshi) 41 2 29

3 संरछि (Sanrachhi) 50 10 19

4 महायुध (Mahayudha) 30 3 8

5 दुर्नाथ (Durnath) 28 5 25

6 जीवनराज (Jeevanraj) 45 2 5

7 रुद्रसेन (Rudrasen) 47 4 28

8 आरिलक (Aarilak) 52 10 8

9 राजपाल (Rajpal) 36 0 0

सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 समुद्रपाल (Samudrapal) 54 2 20

2 चन्द्रपाल (Chandrapal) 36 5 4

3 सहपाल (Sahaypal) 11 4 11

4 देवपाल (Devpal) 27 1 28

5 नरसिंहपाल (Narsighpal) 18 0 20

6 सामपाल (Sampal) 27 1 17

7 रघुपाल (Raghupal) 22 3 25

8 गोविन्दपाल (Govindpal) 27 1 17

9 अमृतपाल (Amratpal) 36 10 13

10 बालिपाल (Balipal) 12 5 27

11 महिपाल (Mahipal) 13 8 4

12 हरिपाल (Haripal) 14 8 4

13 सीसपाल (Seespal) 11 10 13

14 मदनपाल (Madanpal) 17 10 19

15 कर्मपाल (Karmpal) 16 2 2

16 विक्रमपाल (Vikrampal) 24 11 13

टीपः कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों।

विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 मालकचन्द (Malukhchand) 54 2 10

2 विक्रमचन्द (Vikramchand) 12 7 12

3 मानकचन्द (Manakchand) 10 0 5

4 रामचन्द (Ramchand) 13 11 8

5 हरिचंद (Harichand) 14 9 24

6 कल्याणचन्द (Kalyanchand) 10 5 4

7 भीमचन्द (Bhimchand) 16 2 9

8 लोवचन्द (Lovchand) 26 3 22

9 गोविन्दचन्द (Govindchand) 31 7 12

10 रानी पद्मावती (Rani Padmavati) 1 0 0

रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 हरिप्रेम (Hariprem) 7 5 16

2 गोविन्दप्रेम (Govindprem) 20 2 8

3 गोपालप्रेम (Gopalprem) 15 7 28

4 महाबाहु (Mahabahu) 6 8 29

महाबाहु ने सन्यास ले लिए। इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 अधिसेन (Adhisen) 18 5 21

2 विल्वसेन (Vilavalsen) 12 4 2

3 केशवसेन (Keshavsen) 15 7 12

4 माधवसेन (Madhavsen) 12 4 2

5 मयूरसेन (Mayursen) 20 11 27

6 भीमसेन (Bhimsen) 5 10 9

7 कल्याणसेन (Kalyansen) 4 8 21

8 हरिसेन (Harisen) 12 0 25

9 क्षेमसेन (Kshemsen) 8 11 15

10 नारायणसेन (Narayansen) 2 2 29

11 लक्ष्मीसेन (Lakshmisen) 26 10 0

12 दामोदरसेन (Damodarsen) 11 5 19

दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 दीपसिंह (Deepsingh) 17 1 26

2 राजसिंह (Rajsingh) 14 5 0

3 रणसिंह (Ransingh) 9 8 11

4 नरसिंह (Narsingh) 45 0 15

5 हरिसिंह (Harisingh) 13 2 29

6 जीवनसिंह (Jeevansingh) 8 0 1

पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 0 माह 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 पृथ्वीराज (Prathviraj) 12 2 19

2 अभयपाल (Abhayapal) 14 5 17

3 दुर्जनपाल (Durjanpal) 11 4 14

4 उदयपाल (Udayapal) 11 7 3

5 यशपाल (Yashpal) 36 4 27

विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

उपरोक्त जानकारी http://www.hindunet.org/ से साभार ली गई है जहाँ पर इस जानकारी का स्रोत स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ, चित्तौड़गढ़ राजस्थान से प्रकाशित पत्रिका हरिशचन्द्रिका और मोहनचन्द्रिका के विक्रम संवत1939 के अंक और कुछ अन्य संस्कृत ग्रंथों को बताया गया है।

मंगलवार, 3 मार्च 2020

मूर्ख लक्षणे

॥ श्रीराम ॥
ॐ नमोजि गजानना । येकदंता त्रिनयना । 
कृपादृष्टि भक्तजना अवलोकावें ॥ १॥
तुज नमूं वेदमाते । । श्रीशारदे ब्रह्मसुते । 
अंतरी वसे कृपावंते । स्फूर्तिरूपें ॥ २॥
वंदून सद्गुरुचरण । करून रघुनाथस्मरण । 
त्यागार्थ मूर्खलक्षण । बोलिजेल ॥ ३॥
येक मूर्ख येक पढतमूर्ख । उभय लक्षणीं कौतुक । 
श्रोतीं सादर विवेक । केला पाहिजे ॥ ४॥
पढतमूर्खाचें लक्षण । पुढिले समासीं निरूपण । 
साअवध होऊनि विचक्षण । परिसोत पुढें ॥ ५॥
आतां प्रस्तुत विचार । लक्षणें सांगतां अपार । 
परि कांहीं येक तत्पर । होऊन ऐका ॥ ६॥
जे प्रपंचिक जन । जयांस नाहीं आत्मज्ञान । 
जे केवळ अज्ञान । त्यांचीं लक्षणें ॥ ७॥
जन्मला जयांचे उदरीं । तयासि जो विरोध करी । 
सखी मनिली अंतुरी । तो येक मूर्ख ॥ ८॥
सांडून सर्वही गोत । स्त्रीआधेन जीवित । 
सांगे अंतरींची मात । तो येक मूर्ख ॥ ९॥
परस्त्रीसीं प्रेमा धरी । श्वशुरगृही वास करी । 
कुळेंविण कन्या वरी । तो येक मूर्ख ॥ १०॥
समर्थावरी अहंता । अंतरीं मानी समता । 
सामर्थ्येंविण करी सत्ता । तो येक मूर्ख ॥ ११॥
आपली आपण करी स्तुती । स्वदेशीं भोगी विपत्ति । 
सांगे वडिलांची कीर्ती । तो येक मूर्ख ॥ १२॥
अकारण हास्य करी । विवेक सांगतां न धरी । 
जो बहुतांचा वैरी । तो येक मूर्ख ॥ १३॥
आपुलीं धरूनियां दुरी । पराव्यासीं करी मीत्री । 
परन्यून बोले रात्रीं । तो येक मूर्ख ॥ १४॥
बहुत जागते जन । तयांमध्यें करी शयन । 
परस्थळीं बहु भोजन- । करी, तो येक मूर्ख ॥ १५॥
मान अथवा अपमान । स्वयें करी परिच्छिन्न । 
सप्त वेसनीं जयाचें मन । तो येक मूर्ख ॥ १६॥
धरून परावी आस । प्रेत्न सांडी सावकास । 
निसुगाईचा संतोष- । मानी, तो येक मूर्ख ॥ १७॥
घरीं विवेक उमजे । आणि सभेमध्यें लाजे । 
शब्द बोलतां निर्बुजे । तो येक मूर्ख ॥ १८॥
आपणाहून जो श्रेष्ठ । तयासीं अत्यंत निकट । 
सिकवेणेचा मानी वीट । तो येक मूर्ख ॥ १९॥
नायेके त्यांसी सिकवी । वडिलांसी जाणीव दावी । 
जो आरजास गोवी । तो येक मूर्ख ॥ २०॥
येकायेकीं येकसरा । जाला विषईं निलाजिरा । 
मर्यादा सांडून सैरा- । वर्ते, तो येक मूर्ख ॥ २१॥
औषध न घे असोन वेथा । पथ्य न करी सर्वथा । 
न मिळे आलिया पदार्था । तो येक मूर्ख ॥ २२ । 
संगेंविण विदेश करी । वोळखीविण संग धरी । 
उडी घाली माहापुरीं । तो येक मूर्ख ॥ २३॥
आपणास जेथें मान । तेथें अखंड करी गमन । 
रक्षूं नेणे मानाभिमान । तो येक मूर्ख ॥ २४॥
सेवक जाला लक्ष्मीवंत । तयाचा होय अंकित । 
सर्वकाळ दुश्चित्त । तो येक मूर्ख ॥ २५॥
विचार न करितां कारण । दंड करी अपराधेंविण । 
स्वल्पासाठीं जो कृपण । तो येक मूर्ख ॥ २६॥
देवलंड पितृलंड । शक्तिवीण करी तोड । 
ज्याचे मुखीं भंडउभंड । तो येक मूर्ख ॥ २७॥
घरीच्यावरी खाय दाढा । बाहेरी दीन बापुडा । 
ऐसा जो कां वेड मूढा । तो येक मूर्ख ॥ २८॥
नीच यातीसीं सांगात । परांगनेसीं येकांत । 
मार्गें जाय खात खात । तो येक मूर्ख ॥ २९॥
स्वयें नेणे परोपकार । उपकाराचा अनोपकार । 
करी थोडें बोले फार । तो येक मूर्ख ॥ ३०॥
तपीळ खादाड आळसी । कुश्चीळ कुटीळ मानसीं । 
धारीष्ट नाहीं जयापासीं । तो येक मूर्ख ॥ ३१॥
विद्या वैभव ना धन । पुरुषार्थ सामर्थ्य ना मान । 
कोरडाच वाहे अभिमान । तो येक मूर्ख ॥ ३२॥
लंडी लटिका लाबाड । कुकर्मी कुटीळ निचाड । 
निद्रा जयाची वाड । तो येक मूर्ख ॥ ३३॥
उंचीं जाऊन वस्त्र नेसे । चौबारां बाहेरी बैसे । 
सर्वकाळ नग्न दिसे । तो येक मूर्ख ॥ ३४॥
दंत चक्षु आणी घ्राण । पाणी वसन आणी चरण । 
सर्वकाळ जयाचे मळिण । तो येक मूर्ख ॥ ३५॥
वैधृति आणी वितिपात । नाना कुमुहूर्तें जात । 
अपशकुनें करी घात । तो येक मूर्ख ॥ ३६॥
क्रोधें अपमानें कुबुद्धि । आपणास आपण वधी । 
जयास नाहीं दृढ बुद्धि । तो येक मूर्ख ॥ ३७॥
जिवलगांस परम खेदी । सुखाचा शब्द तोहि नेदी । 
नीच जनास वंदी । तो येक मूर्ख ॥ ३८॥
आपणास राखे परोपरी । शरणागतांस अव्हेरी । 
लक्ष्मीचा भरवसा धरी । तो येक मूर्ख ॥ ३९॥
पुत्र कळत्र आणी दारा । इतुकाचि मानुनियां थारा । 
विसरोन गेला ईश्वरा । तो येक मूर्ख ॥ ४०॥
जैसें जैसें करावें । तैसें तैसें पावाअवें । 
हे जयास नेणवे । तो येक मूर्ख ॥ ४१॥
पुरुषाचेनि अष्टगुणें । स्त्रियांस ईश्वरी देणें । 
ऐशा केल्या बहुत जेणें । तो येक मूर्ख ॥ ४२॥
दुर्जनाचेनि बोलें । मर्यादा सांडून चाले । 
दिवसा झांकिले डोळे । तो येक मूर्ख ॥ ४३॥
देवद्रोही गुरुद्रोही । मातृद्रोही पितृद्रोही । 
ब्रह्मद्रोही स्वामीद्रोही । तो येक मूर्ख ॥ ४४॥
परपीडेचें मानी सुख । पससंतोषाचें मानी दुःख । 
गेले वस्तूचा करी शोक । तो येक मूर्ख ॥ ४५॥
आदरेंविण बोलणें । न पुसतां साअक्ष देणें । 
निंद्य वस्तु आंगिकारणें । तो येक मूर्ख ॥ ४६॥
तुक तोडून बोले । मार्ग सांडून चाले । 
कुकर्मी मित्र केले । तो येक मूर्ख ॥ ४७॥
पत्य राखों नेणें कदा । विनोद करी सर्वदा । 
हासतां खिजे पेटे द्वंदा । तो येक मूर्ख ॥ ४८॥
होड घाली अवघड । काजेंविण करी बडबड । 
बोलोंचि नेणे मुखजड । तो येक मूर्ख ॥ ४९॥
वस्त्र शास्त्र दोनी नसे । उंचे स्थळीं जाऊन बैसे । 
जो गोत्रजांस विश्वासे । तो येक मूर्ख ॥ ५०॥
तश्करासी वोळखी सांगे । देखिली वस्तु तेचि मागे । 
आपलें आन्हीत करी रागें । तो येक मूर्ख ॥ ५१॥
हीन जनासीं बरोबरी । बोल बोले सरोत्तरीं । 
वामहस्तें प्राशन करी । तो येक मूर्ख ॥ ५२॥
समर्थासीं मत्सर धरी । अलभ्य वस्तूचा हेवा करी । 
घरीचा घरीं करी चोरी । तो येक मूर्ख ॥ ५३॥
सांडूनियां जगदीशा । मनुष्याचा मानी भर्वसा । 
सार्थकेंविण वेंची वयसा । तो येक मूर्ख ॥ ५४॥
संसारदुःखाचेनि गुणें । देवास गाळी देणें । 
मैत्राचें बोले उणें । तो येक मूर्ख ॥ ५५॥
अल्प अन्याय क्ष्मा न करी । सर्वकाळ धारकीं धरी । 
जो विस्वासघात करी । तो येक मूर्ख ॥ ५६॥
समर्थाचे मनींचे तुटे । जयाचेनि सभा विटे । 
क्षणा बरा क्षणा पालटे । तो येक मूर्ख ॥ ५७॥
बहुतां दिवसांचे सेवक । त्यागून ठेवी आणिक । 
ज्याची सभा निर्नायेक । तो येक मूर्ख ॥ ५८॥
अनीतीनें द्रव्य जोडी । धर्म नीति न्याय सोडी । 
संगतीचें मनुष्य तोडी । तो येक मूर्ख ॥ ५९॥
घरीं असोन सुंदरी । जो सदांचा परद्वारी । 
बहुतांचे उच्छिष्ट अंगीकारी । तो येक मूर्ख ॥ ६०॥
आपुलें अर्थ दुसर्यापासीं । आणी दुसर्याचें अभिळासी । 
पर्वत करी हीनासी । तो येक मूर्ख ॥ ६१॥
अतिताचा अंत पाहे । कुग्रामामधें राहे । 
सर्वकाळ चिंता वाहे । तो येक मूर्ख ॥ ६२॥
दोघे बोलत असती जेथें । तिसरा जाऊन बैसे तेथें । 
डोई खाजवी दोहीं हातें । तो येक मूर्ख ॥ ६३॥
उदकामधें सांडी गुरळी । पायें पायें कांडोळी । 
सेवा करी हीन कुळीं । तो येक मूर्ख ॥ ६४॥
स्त्री बाळका सलगी देणें । पिशाच्या सन्निध बैसणें । 
मर्यादेविण पाळी सुणें । तो येक मूर्ख ॥ ६५॥
परस्त्रीसीं कळह करी । मुकी वस्तु निघातें मारी । 
मूर्खाची संगती धरी । तो येक मूर्ख ॥ ६६॥
कळह पाहात उभा राहे । तोडविना कौतुक पाहे । 
खरें अस्ता खोटें साहे । तो येक मूर्ख ॥ ६७॥
लक्ष्मी आलियावरी । जो मागील वोळखी न धरी । 
देवीं ब्राह्मणीं सत्ता करी । तो येक मूर्ख ॥ ६८॥
आपलें काज होये तंवरी । बहुसाल नम्रता धरी । 
पुढीलांचें कार्य न करी । तो येक मूर्ख ॥ ६९॥
अक्षरें गाळून वाची । कां तें घाली पदरिचीं । 
नीघा न करी पुस्तकाची । तो येक मूर्ख ॥ ७०॥
आपण वाचीना कधीं । कोणास वाचावया नेदी । 
बांधोन ठेवी बंदीं । तो येक मूर्ख ॥ ७१॥
ऐसीं हें मूर्खलक्षणें । श्रवणें चातुर्य बाणे । 
चीत्त देउनियां शहाणे । ऐकती सदा ॥ ७२॥
लक्षणें अपार असती । परी कांहीं येक येथामती । 
त्यागार्थ बोलिलें श्रोतीं । क्ष्मा केलें पाहिजे ॥ ७३॥
उत्तम लक्षणें घ्यावीं । मूर्खलक्षणें त्यागावीं । 
पुढिले समासी आघवीं । निरोपिलीं ॥ ७४॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे 
मूर्खलक्षणनाम समास पहिला ॥ १॥