शनिवार, 2 सितंबर 2023

सिद्ध मंत्र साधना

ॐ 

ॐ नमो सिद्धाय सर्व अरिष्ट निवारनाय
सर्व कार्य सिद्ध कराय ॐ सिद्धाय नमः

ॐ सिद्ध गणेशाय नमः
ॐ सिद्ध सरस्वती माताय नमः
ॐ सिद्धेश्वराय नमः
ॐ सिद्धेश्वरी माताय नमः
ॐ सिद्ध विष्णु देवाय नमः
ॐ सिद्ध महालक्ष्मी माताय नमः
ॐ सिद्ध दत्तात्रेयाय नमः
ॐ सिद्ध गोरक्षनाथाय नमः
ॐ सिद्ध स्वामी हरदासाय नमः
ॐ सिद्ध गुरुदेवाय नमः
ॐ सिद्धाय नमः

ॐ नमो सिद्धाय सर्व अरिष्ट निवारनाय
सर्व कार्य सिद्ध कराय ॐ सिद्धाय नमः

ॐ नमो सिद्धाय सर्व समर्थाय
संसार सर्व दुःख क्षय कराय
सत्व गुण आत्मबल दायकाय, मनो वांछित फल प्रदायकाय
ॐ सिद्ध सिद्धेश्वराय नमः

सिद्ध सिद्धेश्वर शांति दायक तू शांतिदायक तू
सुख कारक सिद्ध विघ्न हर तू सिद्ध विघ्न हर तू
सिद्धियों के ईश्वर सिद्धेश्वर तू सिद्धेश्वर तू
रिद्धि सिद्धि दायक सिद्ध गुरु तू सिद्ध गुरु तू
श्रद्धा भक्ति दायक सिद्ध साईं तू सिद्ध साई तू
कृपा छत्र दाता सिद्ध गोरक्ष तू सिद्ध गोरक्ष तू
सिद्ध सिद्धेश्वर शांति दायक तू शांतिदायक तू

ॐ शांति शांति शांति

सिद्ध प्रार्थना

हे सर्व शक्तिमान

मैं आपकी अज्ञान बालक हु

मेरे शरीर मे आपका निवास हो

मेरे सब कर्म आपकी सेवा हो

कर्मो से उतपन्न पापो की क्षमा हो

मैं आपकी अज्ञान बालक हु

ॐ शांति शांति शांति


है सर्व शक्तिमान

मैं आपसे प्रार्थना करती हूं

मेरे दुर्गुण दुराचार मिटाओ

काम क्रोध लोभ को समाप्त करो

मोह मद मत्सर का अंत करो

मैं आपसे प्रार्थना करती हूं

ॐ शांति शांति शांति


है सर्व शक्तिमान

मैं आपकी शरण मे आयी हु

कर्मेन्द्रियों को अच्छी कार्य शक्ति दो

ज्ञानेन्द्रियो को अच्छी ज्ञान शक्ति दो

मन बुद्धि को अच्छी आत्म शक्ति दो

मैं आपकी शरण मे आयी हु

ॐ शांति शांति शांति


है सर्व शक्तिमान

मैं आत्मसमर्पण करती हूं

सद्गुण प्रेरणा आत्मबल दो

ध्येय प्राप्ति का सिद्ध मार्ग दिखाओ

सुख शांतिदायक कर्म कराओ

मैं आत्म समर्पण करती हूं

ॐ शांति शांति शांति


है सर्व शक्तिमान

मैं आपकी कृपाभिलाषी हु

आप माता हो मा की ममता दो

आप पिता हो पिता का प्यार दो

आप गुरु हो समर्थ बनाओ

मैं आपकी कृपाभिलाषी हु

ॐ शांति शांति शांति

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

विचित्रवीर हनुमान स्तोत्र

अस्य श्रीविचित्रवीर हनुमन्मालामन्त्रस्य श्रीरामचन्द्रो भगवानृषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीविचित्रवीरहनुमान् देवता, ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे मालामन्त्र जपे विनियोगः । अथ करन्यासः । ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः । ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अथ अङ्गन्यासः ॐ ह्रां हृदयाय नमः । ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ ह्रूं शिखायै वषट् । ॐ ह्रैं कवचाय हुम् । ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ह्रः अस्त्राय फट् । अथ ध्यानम् । वामे करे वैरवहं वहन्तं शैलं परे श्रृङ्खलमालयाढ्यम् । दधानमाध्मातसुवर्णवर्णं भजे ज्वलत्कुण्डलमाञ्जनेयम् ॥ ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानल प्रभाज्वलत्प्रतापवज्रदेहाय अञ्जनीगर्भसम्भूताय प्रकटविक्रमवीरदैत्य-दानव यक्षराक्षसग्रहबन्धनाय भूतग्रह- प्रेतग्रहपिशाच ग्रहशाकिनीग्रहडाकिनीग्रह- काकिनीग्रह कामिनीग्रह ब्रह्मग्रहब्रह्मराक्षसग्रह- चोरग्रहबन्धनाय एहि एहि आगच्छागच्छ- आवेशयावेशय मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय कथय व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लङ्काप्रासादभञ्जन सर्वजनं मे वशमानय वशमानय श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्रवीरहनुमते मम सर्वशत्रून् भस्मी कुरु कुरु हन हन हुं फट् स्वाहा ॥

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

नित्य पूजा हवन

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥1 अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥2 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुरेव परम्ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥3 स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥4 चिन्मयं व्यापियत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥5 त्सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजित पदाम्बुजः । वेदान्ताम्बुजसूर्योयः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥6 चैतन्यः शाश्वतःशान्तो व्योमातीतो निरञ्जनः । बिन्दुनाद कलातीतः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥7 ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः । भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥8 अनेकजन्मसम्प्राप्त कर्मबन्धविदाहिने । आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥9 शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापणं सारसम्पदः । गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥10 न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः । तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥11 मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः । मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥12 गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् । गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥13 त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥14 ॐ अग्नि दूतं पुरो दधे हव्य वाहमुप ब्रुवे देवां आ सादयादिह इस मंत्र से अग्नि प्रज्वलित करे अग्नि का ध्यान करे ॐ चत्वारि श्रृंगा त्रयो अस्य पादा द्वै शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्यां आ विवेश। ॐ मुखं यः सर्व देवानाम हव्यभूक कव्यभूक तथा पितृणा च नमस्तस्मै विष्णवे पावकात्मने। ॐ आग्नेय शांडिल्य गोत्र मेषध्वज प्रांगमुख मम सम्मुखो भव। इस मंत्र से गंध पुष्प अक्षता और नैवेद्य (थोड़ा सा गुड) चढ़ाये फिर घी से हवं करे ॐ भूः स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ भुवः स्वाहा, इदं वायवे न मम ॐ स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ धन्वन्तरये स्वाहा, इदं धन्वन्तरये न मम ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यो स्वाहा, इदं विश्वेभ्यो देवेभ्यो न मम ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम ॐ देवकृत सैनसो वयजमनसी स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ मनुष्कृत सैनसो वयजमनसी स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ पितृकृत सैनसो वयजमनसी स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ आत्मकृत सैनसो वयजमनसी स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ एनस एनसो वयजमनसी स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ यच्चाहमेनो विद्वांश्चकार यच्चाविद्वांश्चकार सर्व सैनसो वयजमनसी स्वाहा, इदं अग्नये न मम ॐ परब्रह्मणे परमात्मने नमः, उत्पत्ति स्थिति प्रलय कराय, ब्रह्म हरिहराय, त्रिगुणात्मने, सकल कौतुकानी दर्शय दर्शय, दत्तात्रेयाय नमः मंत्र तंत्र सिद्धिम कुरु कुरु स्वाहा ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुंगन्धिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनं मृत्योंमुक्षियमामृतात स्वाहा ॐ सिद्धाय स्वाहा ॐ नमो सिद्धाय सर्व अरिष्ट निवारनाय सर्व कार्य सिद्ध कराय ॐ सिद्धाय स्वाहा ॐ सिद्ध गणेशाय स्वाहा ॐ सिद्ध सरस्वती माताय स्वाहा ॐ सिद्धेश्वराय स्वाहा ॐ सिद्धेश्वरी माताय स्वाहा ॐ सिद्ध विष्णु देवाय स्वाहा ॐ सिद्ध महालक्ष्मी माताय स्वाहा ॐ सिद्ध दत्तात्रेयाय स्वाहा ॐ सिद्ध गोरक्षनाथाय स्वाहा ॐ सिद्ध स्वामी हरदासाय स्वाहा ॐ सिद्ध गुरुदेवाय स्वाहा ॐ सिद्ध कुलदेवताय स्वाहा ॐ सिद्ध ग्राम देवताय स्वाहा ॐ सिद्ध वास्तु देवताय स्वाहा ॐ सिद्धाय स्वाहा ॐ नमो सिद्धाय सर्व अरिष्ट निवारनाय सर्व कार्य सिद्ध कराय ॐ सिद्धाय स्वाहा ॐ नमो सिद्धाय सर्व समर्थाय संसार सर्व दुःख क्षय कराय सत्व गुण आत्मबल दायकाय, मनो वांछित फल प्रदायकाय ॐ सिद्ध सिद्धेश्वराय स्वाहा कुंजिका स्तोत्र और उसका मंत्र इसके बाद अग्नि की पूजा करे, गंध अक्षत पुष्प दीप और नैवेद्य और आखरी आहुति डाले ॐ सप्त ते अग्ने समिधः सप्त जिव्हा सप्त ऋषय सप्त धाम प्रियाणी सप्त होत्रा सप्तधा त्वा यजन्ति सप्त योनिरा पृणस्व घृतेन स्वाहा। हाथ जोड़कर हवन कर्म गुरुदेव के चरणों में अर्पित करे अनेन नित्य होम कर्मणा श्री परमेश्वर प्रियताम न मम। इसके बाद आरती करे। गणेश जी की आरती देवी की आरती गुरुदेव की आरती ज्योत से ज्योत जगाओ.... ज्योत से ज्योत जगाओ सदगुरु ! ज्योत से ज्योत जगाओ।। मेरा अन्तर तिमिर मिटाओ सदगुरु ! ज्योत से ज्योत जगाओ।। हे योगेश्वर ! हे परमेश्वर ! हे ज्ञानेश्वर ! हे सर्वेश्वर ! निज कृपा बरसावो सदगुरु ! ज्योत से..... हम बाऱक तेरे द्वार पे आये, मंगऱ दरस दिखाओ सदगुरु ! ज्योत से.... शीश झुकाय करें तेरी आरती, प्रेम सुधा बरसाओ सदगुरु ! ज्योत से.... साची ज्योत जगे जो हृदय में सोऽहं नाद जगाओ सदगुरु ! ज्योत से.... अन्तर में युग युग से सोई, चित शक्ति को जगाओ सदगुरु ! ज्योत से.... जीवन में श्रीराम अविनाशी, चरणन शरण लगाओ सदगुरु ! ज्योत से...

रविवार, 15 जनवरी 2023

भाषा की दरिद्रता - बच्चो के नाम

*सीताराम*

भाषा की दरिद्रता :  नाम

हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? उत्तर भारतीय हिन्दू समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है.
एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, बताया पोती का नाम अवीरा है, बड़ा ही यूनिक नाम रखा है। पूछने पर कि इसका अर्थ क्या है, बोले कि बहादुर, ब्रेव कॉन्फिडेंशियल। सुनते ही दिमाग चकरा गया। फिर बोले कृपा करके बताएं आपको कैसा लगा?  मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत हीअशोभनीय नाम है। नहीं रखना चाहिए. उनको बताया कि
1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित (स्त्री)
2. स्वतंत्र (स्त्री) उसका नाम होता है अवीरा.
नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः  सा अवीरा

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए,  बोले महाराज क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?

आजकल लोग नया करने की ट्रेंड में कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं जैसे कि लड़की हो तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा ... लड़का हो तो वियान, कियान, गियान, केयांश ...और तो और इन शब्दों के अर्थ पूछो तो  दे गूगल ...  दे याहू ... और उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला"

नाम को यूनीक रखने के फैशन के दौर में एक सज्जन  ने अपनी गुड़िया का नाम रखा "श्लेष्मा". स्वभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में था. सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! इसका अर्थ क्या होता है? तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो" मैं सर पकड़ कर 10 मिनट मौन बैठा रहा ! मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है तो पूछ बैठे. क्या हुआ have I said anything weird? मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का mucus" उसके बाद जो होना था सो हुआ.

यही हालात है उत्तर भारतीय हिन्दूओं के एक बहुत बड़े वर्ग का। न जाने हो क्या गया है उत्तर भारतीय हिन्दू समाज को ? फैशन के दौर में फैंसी कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग हिन्दू समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है

अशास्त्रीय नाम न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है - जो इसके तात्कालिक कुप्रभाव हैं.

भाषा की संकरता इसका दूरस्थ कुप्रभाव है.

नाम रखने का अधिकार दादा-दादी, भुआ, तथा गुरुओं का होता है. यह कर्म उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है.
आप जब दादा दादी बनेंगे तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएँ उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उसपर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, विचार करें. अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई "श्लेष्मा" हो सकती है,कोई भी अवीरा हो सकती है।

शास्त्रों में लिखा है व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ती है.
नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।
नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत:  प्रशस्तं खलु नामकर्म।
{वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}

स्मृति संग्रह में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.
आयुर्वर्चो sभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।
नामकर्मफलं त्वेतत्  समुद्दिष्टं मनीषिभि:।।

नाम कैसा हो--
नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है पारस्करगृह्यसूत्र  1/7/23 में बताया गया है-
द्व्यक्षरं चतुरक्षरं वा घोषवदाद्यंतरस्थं।
दीर्घाभिनिष्ठानं कृतं कुर्यान्न तद्धितम्।।
अयुजाक्षरमाकारान्तम् स्त्रियै तद्धितम् ।।
इसका तात्पर्य यह है कि बालक का नाम दो या चारअक्षरयुक्त, पहला अक्षर घोष वर्ण युक्त, वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा वर्ण, मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदिऔर नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त हो तद्धितान्त न हो।
जैसे देव शर्मा ,सूरज वर्मा ,कन्या का नाम विषमवर्णी तीन या पांच अक्षर युक्त, दीर्घ आकारांत एवं तद्धितान्त होना चाहिए यथा श्रीदेवी आदि।

धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं -
१ देवनाम
२ मासनाम
३ नक्षत्रनाम
४ व्यावहारिक नाम

नोट -कुंडली के नाम को व्यवहार में नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए. यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की आवश्यकता होती है, व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का नाम गुप्त होना चाहिए।

हमारे शास्त्रों में वर्ण अनुसार नाम की व्यवस्था की गई है ब्राह्मण का नाम मंगल सूचक, आनंद सूचक, तथा शर्मा युक्त होना चाहिए. क्षत्रिय का नाम बल रक्षा और शासन क्षमता का सूचक, तथा वर्मा युक्त होना चाहिए, वैश्य का नाम धन ऐश्वर्य सूचक, पुष्टि युक्त तथा गुप्त युक्त होना चाहिए, अन्य का नाम सेवा आदि गुणों से युक्त, एवं दासान्त होना चाहिए।

पारस्कर गृहसूत्र में लिखा है -
शर्म ब्राह्मणस्य वर्म क्षत्रियस्य गुप्तेति वैश्यस्य

शास्त्रीय नाम की हमारे सनातन धर्म में बहुत उपयोगिता है मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण उसमें विद्यमान होते हैं. बालकों का नाम लेकर पुकारने से उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है इसीलिए नाम में यदि उदात्त भावना होती है तो बालकों में यश एवं भाग्य का अवश्य ही उदय संभव है।

हमारे सनातन धर्म में अधिकांश लोग अपने पुत्र पुत्रियों का नाम भगवान के नाम पर रखना शुभ समझते हैं ताकि इसी बहाने प्रभु नाम का उच्चारण भगवान के नाम का उच्चारण हो जाए।
भायं कुभायं अनख आलसहूं।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूं॥

विडंबना यह है की आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूल रूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है. इससे बचें शास्त्रोक्त नाम रखें इसी में भलाई है, इसी में कल्याण है।

*सीताराम*