कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें है बातो का क्या...
इसीलिये, गोरक्ष विद्या कहती है,
अध्यात्म में प्रेम तो होता है, पर रिश्ता नही होता,
रिश्ते में बंध होता है। और बंध मुक्ति में बाधा निर्माण करता है।
प्रेम तो प्रेम है
गुरु का हो, माँ का हो या ईश्वर का....
रिश्ते में मालिक नौकर के जैसा भेद होता है।
प्यार से रहो, लेकिन रिश्ते मत बनाओ, सब से प्रेम करो, पर किसी चीज पर सिर्फ मेरा हक है, ये पागलपंती छोड़ दो।
दुनिया मे तुम्हारे अकेले के लिये कुछ भी नही बना....
तुम स्वयं भी किसी एक के लिये नही बने।
तुम पर भी अनेक लोगो के उपकार है, सहयोग है, उनका भी हक़ है।
तुम भी किसी का भाई हो, किसी की बहन हो, किसी का बेटा हो, अनेक बंध लेकर ही जन्म होता है।
इन्ही बन्धों से मुक्त गुरु करते है, और केवल ईश्वर की ओर लेके जाते है।
वही बन्धमुक्त है। एक बन्धमुक्त के पास जाने के लिये खुद को भी बंध मुक्त होना पड़ता है।
इसलिये संसार मे सब के साथ बंधे हुए हो ऐसा नाटक करो, अंदरसे केवल प्रेम उन्ही से करो जो जो बंध मुक्त है, या जो बंध से मुक्त होना चाहते है।
आदेश.....
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