रविवार, 22 जनवरी 2017

परहित सरिस धर्म नही भाई

[1/22, 7:10 PM] वैष्णव.महाराज: योगेश भाई
कल का विषय आगेबढाते है

हित क्या है?
[1/22, 7:11 PM] वैष्णव.महाराज: कौनसा हित ? असली है।

[1/22, 7:12 PM] वैष्णव.महाराज: क्या किसी को खानां दे दिया, कपडे दे दिए, घर दे दिया तो उसका हित हो गया?

[1/22, 7:16 PM] Yogesh Kshatriy: अगर कोइ कामना स्वहित मन मे लेकर सुन भी  रहा हो कथा तो उनके लिऐ भी एक दोहा है
[1/22, 7:17 PM] Yogesh

Kshatriy: जे सकाम नर सुनहि जै गावही। सुख संम्पती नाना विधी पावहि ।।

[1/22, 7:19 PM] वैष्णव.महाराज: लेकिन हम को अगर परहित करना है तो क्या करना चाहिए
?
[1/22, 7:19 PM] Yogesh Kshatriy: भाई जिसको चाहिए वो ये भी माँगले प्रभुसे पर कथा सुने

[1/22, 7:20 PM] Yogesh Kshatriy: क्या करना ऊचित है ?

[1/22, 7:23 PM] वैष्णव.महाराज: किसी के जीवन में सांसारिक परिस्थिति विषम है, तो उसके लिये दया का भाव रखना, उसकी मदद करना अच्छी बात है। इससे आप को शान्ति मिलेगी, पूण्य होगा, आप शायद धीरे धीरे मोक्ष की तरफ चले भी जाओ।

[1/22, 7:26 PM] वैष्णव.महाराज: लेकिन ये परहित नही है। गलत नही है। ऐसे करना जरुरी भी है।
दान करना अच्छी बात है। लेकिन इसमें दान लेने वाले का या आप जिसकी मदद कर रहे हो उसका हित होगा ही, ऐसा नही है।

[1/22, 7:28 PM] वैष्णव.महाराज: आत्म कल्याण सर्वोपरि माना गया है।
आत्म हित जिसमे हो दूसरे का,
इसमें लेने वाला और देने वाला दोनों मुक्ति के अधिकारी हो जाते है।
[1/22, 7:33 PM] वैष्णव.महाराज: राम क्या केवट को अच्छी नाव, अच्छा घर धन दौलत अच्छे कपडे दे नही सकते थे ?

*परहित सरिस धर्म नही भाई*

वो कर्म होना चाहिए जिसका न हमे अहंकार हो, जिसमे दुसरो का हित भी हो

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

संक्रांतिला तीळ महत्वाची का?

[1/13, 6:57 PM] वैष्णव.महाराज: हिंदु मान्यतेनुसार, तिळाचे तेलास तुपानंतर दुसरे स्थान आहे.काळे तिळाचा वापरही धार्मिक कार्यात तर्पण करताना होतो. शनी देवास तीळाचे तेल वाहण्याची पद्धत आहे.आयुर्वेदात पण याचा पुष्कळ वापर होतो.
तिळाच्या तेलामुळे रक्तातील कोलेस्टेरॉल काबूत
ठेवायला मदत होते. तिळात मोनोअनसॅच्युरेटेड मेदाम्ल जास्त
प्रमाणात असते.याच्या तेलातिल आम्ले रक्तातील कोलेस्टेरॉल वाढू देत नाहीत.यात लोह , मॅग्नेशियम, मॅगनिज , तांबे ,कॅल्शियम भरपुर प्रमाणात असते, ऐसे आहार शास्त्र म्हणते.

जुन्या काळात स्त्रिया तरुणपणा व सौंदर्य टिकावे म्हणुन तीळापासुन केलेला हलवा खात असत.
योद्धे बल व उर्जेसाठी याचे सेवन करायचे.

हिवाळयात थंडी ने त्वचा कोरडी पड़ते. त्यावर उपाय व्हावा म्हणून संक्रांतीला तिळ वापरन्यात येते. तीळ किवां त्यापासून बनलेले पदार्थ या काळात ज्यास्त खाल्ले तर पुढे उन्हाळा संपे पर्यन्त त्वचा कोरडी पड़त नाही. शरीरात स्निग्धता राहते. विशेष म्हणजे मुतखड़ा होन्याच्या क्रिये वर अंकुश लागतो.
तीळ टाकून स्नान केल्याने डोक्यात खाज येत नाही, कोंडा कमी होतो.

मुतखड़ा झाल्यास 250 ग्राम तील व् तितकाच गुळ घेऊन लाडू करावेत 50
रोज सकाळ संध्याकाळ 1-1 लाडू खावा, 25 दिवस. खड़ा विर्घळतो किवां चुरा होऊन निघुन जातो.

संक्रांतिला वयाने मोठ्या असलेल्या व्यक्तिने लहांनास तील गुळ द्यावा, व् घेणाऱ्या ने चरण स्पर्श करावा अर्शी रूढ़ि आहे.
*जुने लोक म्हणतात, ज्याने संक्रांतिला ज्याचे हातून आपन तीळ घेतो, तो व्यक्ति जेव्हा वृद्ध होऊन मृत्यु च्या समीप जातो, नेमका तेव्हा तीळ घेणारा तिथे काही न काही कारणाने हजर असतो*

जय गुरुदेव
[1/13, 7:03 PM] Yogesh Kshatriy: सत्य हे महाराज,ह्या दिवसात शरिराला सिग्नता व ऊर्जा आवश्यक असते ती तिळ आणि गूळ पासून मीळते
[1/13, 7:04 PM] Yogesh Kshatriy: आपल्या प्रत्येक सनाल शास्ञीय आधर आहे
[1/13, 7:20 PM] वैष्णव.महाराज: हो, आणि ती शास्त्रीय कारण आपन पुढे प्रत्येक सनाला जाणून घेऊ...

51 शक्तिपीठ

दक्ष के यज्ञ से सती का शव कंधे पर लेकर शिव पृथ्वी पर घुमते रहे। इस बीच सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर को भगवान विष्णु ने धीरे धीरे टुकड़े करना शुरू किया। सती अंग या आभूषण जहाँ जहाँ गिरे वहाँ वहाँ शक्तिपीठ बन गया। ऐसे 51 स्थान है।

1. किरीट शक्तिपीठ

किरीट शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल के
हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है। यहां सती माता का किरीट
यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।
(शक्ति का मतलब माता का वह रूप जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब शिवजी का वह अवतार जो माता के इस रूप के स्वांगी है )

2. कात्यायनी शक्तिपीठ

वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है।

3. करवीर शक्तिपीठ

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह
शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

4. श्री पर्वत शक्तिपीठ

इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां
की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द

5. विशालाक्षी शक्तिपीठ

उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

6. गोदावरी तट शक्तिपीठ

आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।

7. शुचीन्द्रम शक्तिपीठ

तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिसागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के ऊर्ध्वदन्त गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।

8. पंच सागर शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।

9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ

हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।

10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ

इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।

11. अट्टहास शक्तिपीठ ( Attahas
Shakti Peeth) :
अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।

12. जनस्थान शक्तिपीठ (Janasthan
Shakti Peeth) :
महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।

13. कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (Kashmir Shakti
Peeth or Amarnath Shakti Peeth) :
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।

14. नन्दीपुर शक्तिपीठ
(Nandipur Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।

15. श्री शैल शक्तिपीठ (Shri Shail Shakti Peeth ) :
आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं

16. नलहटी शक्तिपीठ
(Nalhati Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है, जहां माता की उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।

17. मिथिला शक्तिपीठ (Mithila Shakti
Peeth ) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर
है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ
को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या
महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।

18. रत्नावली शक्तिपीठ
(Ratnavali Shakti Peeth) :
यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

19. अम्बाजी शक्तिपीठ
(Ambaji Shakti Peeth) :
गुजरात जूना गढ़ के गिरनार पर्वत के शिखर पर देवी अम्बिका  का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

20. जालंध्र शक्तिपीठ (Jalandhar
Shakti Peeth) :
पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता का जालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।.

21. रामागरि शक्तिपीठ
इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर
भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्रकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।

22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ
झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है।एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ
माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की
शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।

24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी
शक्तिपीठ
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन
सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता की पीठ गिरी थी। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।

25. बहुला शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।

26. उज्जयिनी शक्तिपीठ
मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।

27. मणिवेदिका शक्तिपीठ
राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।

28. प्रयाग शक्तिपीठ
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं तथा भैरव भव है।

29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ
(Utakal Shakti Peeth) :
उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना
जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां
की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।

30. कांची शक्तिपीठ (Kanchi
Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है जहां माता का कंकाल
गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।

31. कालमाध्व शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।

32. शोण शक्तिपीठ
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा
था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

33. कामाख्या शक्तिपीठ
कामगिरि असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा
था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।

*आज भी यहां एक चमत्कार देखने मिलता है। साल में एक बार तीन दिन इस माता को पीरियड्स आते है। 22, 23 और 24 जून को मूर्ति से लाल रक्त वर्ण का पानी निकलता है, इस दौरान दर्शन निषिद्ध है। इसी दौरान यहां मेला लगता है जिसमे विश्व भर के तांत्रिक साधना के लिए आते है।*

34. जयन्ती शक्तिपीठ

जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय केजयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम
जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

35. मगध् शक्तिपीठ
बिहार की राजधनी पटना में स्थित
पटनेश्वरी देवी को ही
शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्द करी तथा भैरव व्योमकेश हैं।

36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के
शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।

37. त्रिपुरी सुन्दरी
शक्तित्रिपुरी पीठ
त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

38 . विभाष शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्राम में स्थित है
विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र
शक्तिपीठ
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के
पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली
पीठ के नाम से भी जाना जाता है।
यहां माता के  दहिने चरण (गुल्पफद्ध) गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।

40. युगाद्या शक्तिपीठ,
क्षीरग्राम शक्तिपीठ

पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति जुगाड़या और भैरव क्षीर खंडक है।

41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के ‘दायें पाँव की उँगलियाँ’ गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।

42. कालीघाट शक्तिपीठ

पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।

43. मानस शक्तिपीठ
तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।

44. लंका शक्तिपीठ
श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

45. गण्डकी शक्तिपीठ

नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ

नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।

47. हिंगलाज शक्तिपीठ
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र (सर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन है।

48. सुगंध शक्तिपीठ
बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।

49. करतोयाघाट शक्तिपीठ
बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।

50. चट्टल शक्तिपीठ
बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।

51. यशोर शक्तिपीठ  बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरी थी। यहां शक्ति
यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

सती का यज्ञ में जलना, वीरभद्र का जन्म

[1/12, 5:47 PM] वैष्णव.महाराज: समाचार सब संकर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए॥
जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह
बिधिवत फलु दीन्हा॥1॥

ये सब समाचार शिवजी को मिले, तब उन्होंने क्रोध करके वीरभद्र को भेजा। उन्होंने वहाँ जाकर यज्ञ विध्वंस कर डाला और सब देवताओं को यथोचित फल (दंड) दिया।

भै जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु संभु बिमुख कै होई॥
यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं संछेप बखानी॥2॥

दक्ष की जगत्प्रसिद्ध वही गति हुई, जो
शिवद्रोही की हुआ करती है। यह इतिहास सारा संसार जानता है, इसलिए मैंने संक्षेप में वर्णन किया सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा।
तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु
पाई॥3॥

सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर माँगा कि मेरा जन्म-जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती के शरीर से जन्म लिया।

जब तें उमा सैल गृह जाईं। सकल सिद्धि संपति तहँ छाईं॥
जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे। उचित बास हिम भूधर दीन्हे॥4॥

जब से उमाजी हिमाचल के घर जन्मीं, तबसे वहाँ सारी सिद्धियाँ और सम्पत्तियाँ छा गईं। मुनियों ने जहाँ-तहाँ सुंदर आश्रम बना लिए और हिमाचल ने उनको उचित स्थान दिए।

सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति।
प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति॥65॥

उस सुंदर पर्वत पर बहुत प्रकार के सब नए-नए वृक्ष सदा
पुष्प-फलयुक्त हो गए और वहाँ बहुत तरह की मणियों
की खानें प्रकट हो गईं॥65॥
[1/12, 6:05 PM] वैष्णव.महाराज: अपने पिता के घर जब सती ने शिव का और स्वयं का अपमान अनुभव किया तो सती को क्रोध भी हुआ और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभयंकर वीरभद्र प्रगट हुए।
*यह जटा जहाँ शिव ने पटकी थी , उसका निशान अभी भी मौजूद है। यह आप त्र्यम्बकेश्वर जा के देख सकते है*
शिव ने उन्हें वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ का
विध्वंस करने और विद्रोहियों के मर्दन यानी अहंकार का नाश करने की आज्ञा दी। हालांकि दक्ष को परास्त करना बहुत कठिन काम था। लेकिन वीरभद्र ने इस काम को भी कर दिखाया।
[1/12, 6:09 PM] वैष्णव.महाराज: वीरभद्र ने देखते ही देखते दक्ष का मस्तक काटकर फेंक देया। समाचार भगवान शिव के कानों में भी पड़ा। वे प्रचंड आंधी की भांति कनखल (हरिद्वार) जा पहुंचे। सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव ने अपने आपको भूल गए। सती के प्रेम और उनकी भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया। उन शंकर के मन को व्याकुल कर दिया, जिन्होंने काम पर भी विजय प्राप्त की थी और जो सारी सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखते थे। वे सती के प्रेम में खो गए, बेसुध हो गए।
[1/12, 6:11 PM] वैष्णव.महाराज: भगवान शिव ने उन्मत की भांति सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रख लिया। वे सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रूक गई, जल का प्रवाह ठहर गया और रुक गईं देवताओं की सांसे।
सृष्टि व्याकुल हो उठी, सृष्टि के प्राणी पुकारने
लगे— पाहिमाम! पाहिमाम! भयानक संकट उपस्थित देखकर सृष्टि के पालक भगवान विष्णु आगे बढ़े। वे भगवान शिव की बेसुधी में अपने चक्र से सती के एक-एक अंग को काट-काट कर गिराने लगे। धरती पर इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे। जब सती के सारे अंग कट कर गिर गए, तो भगवान शिव पुनः अपने आप में आए। जब वे अपने आप में आए, तो पुनः सृष्टि के सारे कार्य चलने लगे।
[1/12, 6:12 PM] वैष्णव.महाराज: धरती पर जिन 51 स्थानों में सती के अंग कट- कटकर गिरे थे, वे ही स्थान आज शक्ति के पीठ स्थान माने जाते हैं। आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं, उपासना होती है। धन्य था शिव और सती का प्रेम। शिव और सती के प्रेम ने उन्हें अमर बना दिया है, वंदनीय बना दिया है
[1/12, 6:15 PM] वैष्णव.महाराज: सती का कौनसा अंग कहाँ गिरा, आज वह स्थान पृथ्वी पर कहा है, वहां कौनसी देवी का मंदिर है, इस के लिए आप को कल की कथा का इंतजार करना पड़ेगा।

जय गुरुदेव

बुधवार, 11 जनवरी 2017

सुख कशात आहे/?


ही जपानमध्ये घडलेली अगदी खरीखुरी घटना ! एकदा तेथे एका माणसाने आपल्या घराचं नूतनीकरण करायला सुरुवात केली. असे करतना भिंत तोडून उघडायला लागते. जपानी घरांच्या भिंती लाकडाच्या बनवलेल्या असतात. आणि त्यांत सहसा पोकळी असते. तर, ही भिंत तोडताना त्या माणसाच्या असं लक्षात आलं की आतमध्ये एक पाल अडकून पडली आहे आणि भिंत सांधताना मारलेल्या एका खिळ्याततिचा एक पाय चिणला गेला आहे.

त्याला त्या पालीची अवस्था पाहून खूप दया आली आणि त्याचं कुतुहलही जागृत झालं, की हा खिळा जवळपास ५ वर्षां पूर्वी हे घर नवीन बांधलं तेंव्हा ठोकला गेला होता. मग ५ वर्ष पाय चिणलेल्या अवस्थेत ही पाल जिवंत कशी राहिली असेल? असं काय घडलं होतं कीत्या अंधार असलेल्या पोकळीत हालचाल न करता ती पाल जिवंत कशी रहिली?

जे जवळ जवळ अशक्य होतं. त्यानं त्याचं काम अक्षरशः थांबवलच आणि तो त्य पालीवर लक्ष ठेवून बसला, की ती आता कशी,काय खाते? काही वेळाने पाहता पाहता त्याला दीसले की तेथे दुसरी पालही आली आहे आणि तिच्या तोंडात अन्न आहे आणि ती हळूहळू त्या खिळलेल्या पालीला ते अन्न भरवत आहे!!! हे पाहून तो माणूस अवाक झाला, गहिवरला.

कल्पना करा १ नाही, २ नाही तर ५ वर्ष न कंटाळता एक पाल आपल्या जोडीदाराची अशी सेवा करते, अजिबात आशा सोडून न देता ! एक पाली सारखा नगण्य प्राणी आपल्या प्रिय जोडीदाराला सोडुन नजाता त्याची अशा प्रकारे काळजी घेतो, तर आपण माणसं यांपासून काही तरी नक्कीच शिकू शकतो.
तेंव्हा, अडचणीत असलेल्या आपल्या जवळ्च्या प्रिय व्यक्तीला नेहमी आधार द्या जेंव्हा तिला तुमची खरोखरच गरज असते, तेंव्हा. "तुम्ही" म्हणजे त्या व्यक्तीसाठी संपूर्ण दुनिया असू शकता. कोणतीही गोष्ट (नातं,विश्वास) तुटण्यासाठी एक क्षणाचं दूर्लक्ष पुरेसं असतं, परंतु जोडण्यासाठी अख्खं आयुष्य पणाला लावावं लागतं.....
🔹नाती जपण्यात मजा आहे
🔸बंध आयुष्यचे विणण्यात मजा आहे
🔹जुळलेले सूर गाण्यात मजा आहे
🔸येताना एकटे असलो तरी
सर्वांचे होऊन जाण्यात मजा आहे
🔹नशीब कोणी दुसरं लिहित नसतं आपल नशीब आपल्याच हाती असतं
🔸येताना काही आणायच नसतं
जाताना काही न्यायचं नसतं
मग हे आयुष्य तरी कोणासाठी जगायचं असतं
🔹याच प्रश्नाचे उत्तर
शोधण्यासाठी जन्माला यायचं असतं

काय विचार मांडलाय,
हे ध्यानात आले तर किती छान होईल. ईश्वराने जग सुन्दर बनवलय, पण आपन हा विचार करतो, त्याच्या पासून मला काय सुख आहे.
पन प्रेम हे सुख मागण्या साठी नसतं, घेण्यात सुख असत, पन देण्यात आनंद असतो.
आणि सुख नश्वर आहे, पण आनंद शाश्वत आहे.
*आनंदी राहण्याचा राजमार्ग आहे - सुख देत रहा*