[1/22, 7:10 PM] वैष्णव.महाराज: योगेश भाई
कल का विषय आगेबढाते है
हित क्या है?
[1/22, 7:11 PM] वैष्णव.महाराज: कौनसा हित ? असली है।
[1/22, 7:12 PM] वैष्णव.महाराज: क्या किसी को खानां दे दिया, कपडे दे दिए, घर दे दिया तो उसका हित हो गया?
[1/22, 7:16 PM] Yogesh Kshatriy: अगर कोइ कामना स्वहित मन मे लेकर सुन भी रहा हो कथा तो उनके लिऐ भी एक दोहा है
[1/22, 7:17 PM] Yogesh
Kshatriy: जे सकाम नर सुनहि जै गावही। सुख संम्पती नाना विधी पावहि ।।
[1/22, 7:19 PM] वैष्णव.महाराज: लेकिन हम को अगर परहित करना है तो क्या करना चाहिए
?
[1/22, 7:19 PM] Yogesh Kshatriy: भाई जिसको चाहिए वो ये भी माँगले प्रभुसे पर कथा सुने
[1/22, 7:20 PM] Yogesh Kshatriy: क्या करना ऊचित है ?
[1/22, 7:23 PM] वैष्णव.महाराज: किसी के जीवन में सांसारिक परिस्थिति विषम है, तो उसके लिये दया का भाव रखना, उसकी मदद करना अच्छी बात है। इससे आप को शान्ति मिलेगी, पूण्य होगा, आप शायद धीरे धीरे मोक्ष की तरफ चले भी जाओ।
[1/22, 7:26 PM] वैष्णव.महाराज: लेकिन ये परहित नही है। गलत नही है। ऐसे करना जरुरी भी है।
दान करना अच्छी बात है। लेकिन इसमें दान लेने वाले का या आप जिसकी मदद कर रहे हो उसका हित होगा ही, ऐसा नही है।
[1/22, 7:28 PM] वैष्णव.महाराज: आत्म कल्याण सर्वोपरि माना गया है।
आत्म हित जिसमे हो दूसरे का,
इसमें लेने वाला और देने वाला दोनों मुक्ति के अधिकारी हो जाते है।
[1/22, 7:33 PM] वैष्णव.महाराज: राम क्या केवट को अच्छी नाव, अच्छा घर धन दौलत अच्छे कपडे दे नही सकते थे ?
*परहित सरिस धर्म नही भाई*
वो कर्म होना चाहिए जिसका न हमे अहंकार हो, जिसमे दुसरो का हित भी हो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें