गुरुवार, 12 जनवरी 2017

सती का यज्ञ में जलना, वीरभद्र का जन्म

[1/12, 5:47 PM] वैष्णव.महाराज: समाचार सब संकर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए॥
जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह
बिधिवत फलु दीन्हा॥1॥

ये सब समाचार शिवजी को मिले, तब उन्होंने क्रोध करके वीरभद्र को भेजा। उन्होंने वहाँ जाकर यज्ञ विध्वंस कर डाला और सब देवताओं को यथोचित फल (दंड) दिया।

भै जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु संभु बिमुख कै होई॥
यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं संछेप बखानी॥2॥

दक्ष की जगत्प्रसिद्ध वही गति हुई, जो
शिवद्रोही की हुआ करती है। यह इतिहास सारा संसार जानता है, इसलिए मैंने संक्षेप में वर्णन किया सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा।
तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु
पाई॥3॥

सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर माँगा कि मेरा जन्म-जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती के शरीर से जन्म लिया।

जब तें उमा सैल गृह जाईं। सकल सिद्धि संपति तहँ छाईं॥
जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे। उचित बास हिम भूधर दीन्हे॥4॥

जब से उमाजी हिमाचल के घर जन्मीं, तबसे वहाँ सारी सिद्धियाँ और सम्पत्तियाँ छा गईं। मुनियों ने जहाँ-तहाँ सुंदर आश्रम बना लिए और हिमाचल ने उनको उचित स्थान दिए।

सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति।
प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति॥65॥

उस सुंदर पर्वत पर बहुत प्रकार के सब नए-नए वृक्ष सदा
पुष्प-फलयुक्त हो गए और वहाँ बहुत तरह की मणियों
की खानें प्रकट हो गईं॥65॥
[1/12, 6:05 PM] वैष्णव.महाराज: अपने पिता के घर जब सती ने शिव का और स्वयं का अपमान अनुभव किया तो सती को क्रोध भी हुआ और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभयंकर वीरभद्र प्रगट हुए।
*यह जटा जहाँ शिव ने पटकी थी , उसका निशान अभी भी मौजूद है। यह आप त्र्यम्बकेश्वर जा के देख सकते है*
शिव ने उन्हें वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ का
विध्वंस करने और विद्रोहियों के मर्दन यानी अहंकार का नाश करने की आज्ञा दी। हालांकि दक्ष को परास्त करना बहुत कठिन काम था। लेकिन वीरभद्र ने इस काम को भी कर दिखाया।
[1/12, 6:09 PM] वैष्णव.महाराज: वीरभद्र ने देखते ही देखते दक्ष का मस्तक काटकर फेंक देया। समाचार भगवान शिव के कानों में भी पड़ा। वे प्रचंड आंधी की भांति कनखल (हरिद्वार) जा पहुंचे। सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव ने अपने आपको भूल गए। सती के प्रेम और उनकी भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया। उन शंकर के मन को व्याकुल कर दिया, जिन्होंने काम पर भी विजय प्राप्त की थी और जो सारी सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखते थे। वे सती के प्रेम में खो गए, बेसुध हो गए।
[1/12, 6:11 PM] वैष्णव.महाराज: भगवान शिव ने उन्मत की भांति सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रख लिया। वे सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रूक गई, जल का प्रवाह ठहर गया और रुक गईं देवताओं की सांसे।
सृष्टि व्याकुल हो उठी, सृष्टि के प्राणी पुकारने
लगे— पाहिमाम! पाहिमाम! भयानक संकट उपस्थित देखकर सृष्टि के पालक भगवान विष्णु आगे बढ़े। वे भगवान शिव की बेसुधी में अपने चक्र से सती के एक-एक अंग को काट-काट कर गिराने लगे। धरती पर इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे। जब सती के सारे अंग कट कर गिर गए, तो भगवान शिव पुनः अपने आप में आए। जब वे अपने आप में आए, तो पुनः सृष्टि के सारे कार्य चलने लगे।
[1/12, 6:12 PM] वैष्णव.महाराज: धरती पर जिन 51 स्थानों में सती के अंग कट- कटकर गिरे थे, वे ही स्थान आज शक्ति के पीठ स्थान माने जाते हैं। आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं, उपासना होती है। धन्य था शिव और सती का प्रेम। शिव और सती के प्रेम ने उन्हें अमर बना दिया है, वंदनीय बना दिया है
[1/12, 6:15 PM] वैष्णव.महाराज: सती का कौनसा अंग कहाँ गिरा, आज वह स्थान पृथ्वी पर कहा है, वहां कौनसी देवी का मंदिर है, इस के लिए आप को कल की कथा का इंतजार करना पड़ेगा।

जय गुरुदेव

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