रविवार, 8 जनवरी 2017

जीवन जीने की कला

------ जीवन जीने की कला ------

एक नगर में एक जुलाहा रहता था।
वह स्वाभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था।

एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुँचे, कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता?

उनमें से एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहाँ पहुँचकर वह बोला- यह साड़ी कितने की दोगे?

जुलाहे ने कहा- दस रुपये की।

तब लड़के ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिये,
और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला- मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे?

जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा- पाँच रुपये।

लड़के ने उस टुकड़े के भी दो भाग किये और दाम पूछा?

जुलाहा अब भी शांत था।
उसने बताया- ढाई रुपये।

लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया।
अंत में बोला- अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के?

जुलाहे ने बड़े शांत भाव से कहा- बेटे! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या,
किसी के भी काम के नहीं रहे।

अब लड़के को शर्म आई और कहने लगा- मैंने आपका नुकसान किया है,
अतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूँ।

जुलाहे ने कहा- जब आपने साड़ी ली ही नहीं, तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूँ?

लड़के का अभिमान जागा और वह कहने लगा- मैं बहुत अमीर आदमी हूँ और तुम गरीब हो। मैं रुपये दे दूँगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे? और नुकसान मैंने किया है, तो घाटा भी तो मुझे ही पूरा करना चाहिए।

जुलाहे ने मुस्कुराते हुए कहा- तुम यह घाटा पूरा कर ही नहीं सकते।
सोचो! किसान का कितना श्रम लगा तब जाकर कपास पैदा हुई।
फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बीना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना।
इतनी मेहनत तो तभी सफल होती न, जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता और इसका उपयोग करता।
पर तुमने तो इसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपये से यह घाटा कैसे पूरा होगा? जुलाहे की आवाज में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी।

लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया।
उसकी आँखे भर आईं,
और वह जुलाहे के पैरों में गिर गया।

जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा- बेटा! यदि मैं तुम्हारे रुपये ले लेता, तो उसमें मेरा काम चल जाता।
पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता, जो उस साड़ी का हुआ।
कोई भी उससे लाभ नहीं होता।
साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूँगा।
पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई, तो दूसरी कहाँ से लाओगे तुम? तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।

------ सीख ------
जुलाहे की उँची सोच-समझ ने लड़के का जीवन बदल दिया।

------ ये जुलाहा और नहीं था ------
------ ये सन्त कबीर दास जी थे ------

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